हरि प्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी गुरुवार को मनाई जाएगी। हरि प्रबोधिनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक तुलसी का विशेष विधान के साथ पूजन-अर्चन होगा।
काशी विद्वत कर्मकांड परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य अशोक द्विवेदी के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी 22 नवंबर को रात में 11:05 बजे से अगले दिन 23 नवंबर को रात 9:03 बजे तक रहेगी।
23 नवंबर को मृत्युलोक पर सुबह 9:27 से रात में 8:11 बजे तक भद्रा लग रहा है। इसलिए भद्राकाल में तुलसी विवाह नहीं हो सकता है। तुलसी विवाह का मुहूर्त 23 नवंबर को सुबह 7:57 से 9:27 बजे तक है।
हिंदू धर्म तुलसी के पौधे का विशेष महत्व है। ज्योतिषविद विमल जैन व आचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री के अनुसार जिस घर में तुलसीजी पर जल अर्पण और शाम को दीप जलाए जाते हैं,
लकड़ी की चौकी को साफ कर उस पर गंगाजल छिड़ककर आसन बिछाएं। कलश में पवित्र जल भरें और आम के पत्ते लगाकर पूजा के स्थान पर स्थापित करें।
फिर एक आसन पर तुलसी जी और दूसरे पर शालिग्राम जी को स्थापित करें। गंगाजल से तुलसी जी और शालिग्राम जी को स्नान कराएं।
चुनरी आदि नैवेद्य अर्पित कर विधिवत पूजन करें। इस दौरान तुलसी स्तोत्र और तुलसी चालीसा का पाठ करें। ब्राह्मणों को दान देने, रात्रि जागरण भी करना चाहिए।